Next Story
Newszop

इंद्रधनुष का रहस्य: क्या है इसके पीछे का विज्ञान?

Send Push
इंद्रधनुष का जादू

Indradhanush Ka Rahasya

Indradhanush Ka Rahasya

इंद्रधनुष का रहस्य: 'इंद्रधनुष' एक ऐसा दृश्य है जो हर किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने की क्षमता रखता है। यह सात रंगों का एक अद्भुत मिश्रण है, जो बारिश के बाद आसमान में प्रकट होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह कैसे बनता है? यह न तो जादू है और न ही कोई चमत्कार, बल्कि यह विज्ञान का एक अद्भुत परिणाम है। यह विशेष रूप से प्रकाश के अपवर्तन (Refraction), परावर्तन (Reflection) और विक्षेपण (Dispersion) के कारण उत्पन्न होता है।


बारिश और धूप का महत्व बारिश और धूप का महत्व

image


इंद्रधनुष बनने के लिए कुछ खास परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। सबसे पहले, वातावरण में पानी की बूँदों का होना आवश्यक है, जो आमतौर पर बारिश के बाद या हल्की फुहारों के दौरान होती हैं। इसके साथ ही, सूर्य की रोशनी भी महत्वपूर्ण होती है। इंद्रधनुष तब बनता है जब सूर्य क्षितिज से थोड़ा ऊपर होता है, यानी सुबह या शाम के समय। जब हम इंद्रधनुष को देखते हैं, तो हमारी पीठ सूर्य की ओर होती है और हमारी दृष्टि उस दिशा में होती है जहाँ पानी की बूँदें मौजूद होती हैं। सूर्य की किरणें हमारी पीठ के पीछे से आकर इन बूँदों से टकराती हैं और उनके भीतर परावर्तन और अपवर्तन की प्रक्रिया के चलते रंग-बिरंगे इंद्रधनुष के रूप में हमारी आँखों तक पहुँचती हैं।
इंद्रधनुष का निर्माण इंद्रधनुष कैसे बनता है?

image


अपवर्तन (Refraction) - जब सूर्य का प्रकाश हवा से होते हुए पानी की बूँद के अंदर प्रवेश करता है, तो उसकी गति बदलने के कारण प्रकाश की दिशा भी बदल जाती है। इस दिशा परिवर्तन को 'अपवर्तन' कहते हैं।

विक्षेपण (Dispersion) - पानी की बूँद के अंदर पहुँचने पर सूर्य का सफेद प्रकाश अलग-अलग रंगों में बिखर जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि हर रंग की तरंगदैर्घ्य अलग होती है, जिससे वे अलग-अलग कोण पर मुड़ते हैं। इसी प्रक्रिया को 'विक्षेपण' कहा जाता है और यही कारण है कि हमें सात रंग - वायलेट, इंडिगो, ब्लू, ग्रीन, येलो, ऑरेंज और रेड (VIBGYOR) दिखाई देते हैं।

परावर्तन (Internal Reflection) - अब ये रंगीन किरणें बूँद की भीतरी सतह से टकराकर वापस लौटती हैं। यह प्रक्रिया 'पूर्ण आंतरिक परावर्तन' कहलाती है, जहाँ प्रकाश बाहर न निकलकर अंदर ही परावर्तित हो जाता है।

अंतिम अपवर्तन - जब ये परावर्तित रंगीन किरणें बूँद से बाहर निकलती हैं, तब एक बार फिर अपवर्तन होता है। यह अंतिम अपवर्तन इन किरणों को हमारी आँखों तक पहुँचाता है और हमें एक खूबसूरत इंद्रधनुष दिखाई देता है।


इंद्रधनुष का आकार और रंग कौन-सा कोण सबसे महत्वपूर्ण होता है?

इंद्रधनुष का आकार और उसका दिखाई देने वाला कोण भौतिक नियमों पर आधारित होता है। जब सूर्य की किरणें पानी की बूँदों से अपवर्तित और परावर्तित होकर वापस आती हैं, तो लाल रंग की किरणें हमारी आँखों तक लगभग 42 डिग्री के कोण पर पहुँचती हैं, जबकि बैंगनी (वायलेट) रंग की किरणें लगभग 40 डिग्री के कोण पर दिखाई देती हैं। यह कोण सूर्य की स्थिति, पानी की बूँद का आकार और प्रकाश की दिशा से मिलकर बनता है। हर बूँद से 42 डिग्री पर निकलने वाली किरणें जब एक साथ हमारी आँखों तक पहुँचती हैं, तो इंद्रधनुष अर्धवृत्ताकार दिखाई देता है। यदि क्षितिज बाधा न बने और सूर्य काफी नीचे हो (जैसे विमान से देखने पर), तो यह पूरा गोलाकार वृत्त भी दिखाई दे सकता है। इस प्रकार इंद्रधनुष की यह सुंदर बनावट पूरी तरह प्रकाश की गति और दिशा परिवर्तन के विज्ञान पर टिकी होती है।


सात रंगों का रहस्य क्यों होते हैं केवल सात रंग?

image


हमारी आँखें रंगों को पहचानने में सक्षम होती हैं क्योंकि इनमें तीन प्रकार की रंग संवेदनशील कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें कोन सेल्स (cones) कहा जाता है। ये कोशिकाएँ मुख्य रूप से लाल, हरे और नीले रंग की तरंगदैर्घ्य के प्रति संवेदनशील होती हैं। जब इंद्रधनुष बनता है, तो वास्तव में उसमें हजारों रंग होते हैं क्योंकि प्रकाश का विक्षेपण एक निरंतर रंग स्पेक्ट्रम बनाता है। फिर भी हमें केवल सात प्रमुख रंग – वायलेट, इंडिगो, ब्लू, ग्रीन, येलो, ऑरेंज और रेड (VIBGYOR) ही स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। इसका कारण यह है कि हमारी आँखें केवल उन्हीं रंगों को अलग पहचान पाती हैं जिनकी तीव्रता या स्पेक्ट्रम में चौड़ाई अधिक होती है। अन्य रंग भी होते हैं लेकिन वे इतने सूक्ष्म रूप में एक-दूसरे में घुले होते हैं कि हमें अलग-अलग रंगों के रूप में नहीं दिखाई देते। 'सात रंग' की धारणा सर आइज़ैक न्यूटन के समय से चली आ रही है और यह हमारे दृष्टि की सीमाओं और सांस्कृतिक पहचान पर आधारित है।
इंद्रधनुष का दृश्य इंद्रधनुष कहाँ और कब दिखाई देता है?

इंद्रधनुष बनने के लिए कुछ विशेष परिस्थितियाँ अनिवार्य होती हैं। सबसे पहले सूर्य की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह आमतौर पर तब दिखाई देता है जब सूर्य क्षितिज से कम ऊँचाई पर होता है, यानी सुबह या शाम के समय। दोपहर में जब सूर्य सिर के ठीक ऊपर होता है, तब इंद्रधनुष दिखाई देना लगभग असंभव हो जाता है। इसके अलावा, वातावरण में पानी की बूँदों की मौजूदगी आवश्यक है, जो बारिश के बाद या हल्की फुहारों के दौरान होती हैं। ये बूँदें सूर्य की रोशनी को अपवर्तित, विक्षिप्त और परावर्तित करके इंद्रधनुष बनाती हैं। तीसरी महत्वपूर्ण शर्त है साफ आसमान। अगर बादल या धूल रोशनी को रोकते हैं, तो इंद्रधनुष नहीं बनता। इसके अतिरिक्त, झरनों, फव्वारों, झीलों या समुद्र के किनारे भी इंद्रधनुष देखा जा सकता है, क्योंकि वहाँ हवा में सूक्ष्म जलकण होते हैं। विशेषकर जलप्रपातों के पास जब सूर्य की रोशनी सही कोण पर पड़ती है, तो रंग-बिरंगा इंद्रधनुष स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।


डबल इंद्रधनुष का रहस्य दोहरे इंद्रधनुष (Double Rainbow) का रहस्य

image


कभी-कभी हमें आकाश में एक नहीं बल्कि दो इंद्रधनुष दिखाई देते हैं, जिसे 'डबल रेनबो' कहा जाता है। यह तब होता है जब सूर्य की किरणें पानी की बूँद के भीतर दो बार परावर्तित होती हैं। इस द्वितीय परावर्तन से एक अतिरिक्त, द्वितीयक इंद्रधनुष बनता है। दिलचस्प बात यह है कि द्वितीयक इंद्रधनुष में रंगों का क्रम प्राथमिक इंद्रधनुष से उल्टा होता है और इसमें लाल रंग नीचे और वायलेट ऊपर होता है। यह इंद्रधनुष अधिक चौड़ा यानी लगभग 50 से 53 डिग्री के कोण पर दिखाई देता है और आमतौर पर पहले इंद्रधनुष के ऊपर होता है। हालांकि, यह काफी फीका होता है क्योंकि दो बार परावर्तन के कारण प्रकाश की तीव्रता काफी कम हो जाती है, जिससे इसकी चमक प्राथमिक इंद्रधनुष की तुलना में कमजोर होती है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण इंद्रधनुष का आध्यात्मिक दृष्टिकोण

image


जहाँ एक ओर इंद्रधनुष का निर्माण भौतिकी के नियमों द्वारा होता है, वहीं दूसरी ओर यह विभिन्न संस्कृतियों और आध्यात्मिक परंपराओं में एक गूढ़ और दिव्य प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

हिंदू दृष्टिकोण - भारतीय पौराणिक दृष्टिकोण से इंद्रधनुष को एक दिव्य प्रतीक माना जाता है। इसे इंद्र देवता का धनुष कहा गया है, जो वर्षा के अधिपति और आकाशीय शक्तियों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं में इंद्रधनुष को वर्षा के बाद प्रकृति में संतुलन और शांति का संकेत माना जाता है। यह आकाशीय शक्तियों की कृपा और धरती पर शुभता के आगमन का प्रतीक होता है। इस मान्यता का उल्लेख प्राचीन वेदों, पुराणों और विभिन्न धार्मिक प्रतीकों में भी मिलता है, जहाँ इंद्रधनुष को देवताओं और प्रकृति के बीच संवाद का माध्यम माना गया है।

बाइबल में इंद्रधनुष - बाइबल के 'Book of Genesis' के अनुसार जब नूह की बाढ़ समाप्त हुई और जीवन पुनः धरती पर लौटने लगा, तब ईश्वर ने इंद्रधनुष को एक दिव्य प्रतीक के रूप में आकाश में प्रकट किया। यह इंद्रधनुष ईश्वर और मानवता के बीच एक वादा (वाचा) का प्रतीक था, जिसमें ईश्वर ने यह आश्वासन दिया कि वह फिर कभी पूरी पृथ्वी को जलप्रलय से नष्ट नहीं करेंगे। ईसाई परंपरा में इंद्रधनुष को आशा, ईश्वर की वचनबद्धता और उसकी सुरक्षा की भावना से जोड़ा गया है। यह मनुष्य और ईश्वर के बीच एक स्थायी संबंध और दैवीय करुणा का चिन्ह माना जाता है।

बौद्ध दृष्टिकोण - बौद्ध धर्म में इंद्रधनुष को केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि एक गहन आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इसे मानव शरीर के सात ऊर्जा केंद्रों यानी चक्रों से जोड़ा जाता है, जो आत्मिक जागृति और आध्यात्मिक उन्नति का संकेत देते हैं। इंद्रधनुष के सात रंग इन चक्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं और ध्यान, साधना व आत्मविकास की प्रक्रिया में संतुलन और शुद्धता का प्रतीक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ बौद्ध ग्रंथों और लोक मान्यताओं में यह विश्वास है कि जब कोई महान संत या साधक निर्वाण प्राप्त करता है, तब आकाश में इंद्रधनुष का दिखाई देना एक शुभ संकेत होता है, जो आत्मा के मोक्ष और परम शांति की ओर इशारा करता है।


Loving Newspoint? Download the app now